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BSP सेफ्टी कमेटी के नाम पर भद्दा मजाक, रिटायर अधिकारियों व इंटक पदाधिकारियों का नाम आज भी वेबसाइट पर

BSP सेफ्टी कमेटी के नाम पर भद्दा मजाक, रिटायर अधिकारियों व इंटक पदाधिकारियों का नाम आज भी वेबसाइट पर
  • भिलाई स्टील प्लांट की सेफ्टी कमेटी को लेकर सीटू ने उठाए कई सवाल, लगाए गंभीर आरोप।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। सेल भिलाई स्टील प्लांट प्रबंधन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सुरक्षा के साथ खिलवाड़ का खेल पकड़ लिया गया है। जो अधिकारी रिटायर हो चुके हैं, उनका नाम आज भी सुरक्षा समिति में शामिल है। यह बकायदा कंपनी की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। आप भी देख सकते हैं। इसको लेकर कर्मचारियों ने बड़ा सवाल उठा दिया है कि क्या बीएसपी में सेफ्टी कमेटी नहीं बनाई गई है। अगर, बनाई गई है तो वेबसाइट पर अपडेट क्यों नहीं किया गया। अगर, नहीं बनाई गई तो यूनियन चुनाव के 8 माह बीत जाने के बाद प्रबंधन किस चीज का इंतजार कर रहा है।

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प्रबंधन ने मान्यता चुनाव के संपन्न होने की 8 माह बाद भी पुराने मान्यता यूनियन के साथ बनाए गए सुरक्षा उप समितियों के नामों को ही सुरक्षा विभाग के वेबसाइट पर रखे रहना और उन्हीं सुरक्षा समिति सदस्यों के साथ बैठकें करना प्रबंधन की सुरक्षा को लेकर संजीदगी को उजागर करता है। इंटक अब मान्यता में नहीं है, लेकिन बीएसपी की सेफ्टी कमेटी में इंटक पदाधिकारी आज भी बरकरार हैं। इसे लेकर पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन सीटू ने सवाल उठा दिया है। रांची में हो रहे जेसीएसएसआई की बैठक में यह मुद्दा उठ गया है।

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सुरक्षा विभाग वेबसाइट पर सेवानिवृत्त अधिकारी, पूर्व मान्यता यूनियन प्रतिनिधियों के नाम

सीटू ने पिछले दिनों मुख्य महाप्रबंधक सुरक्षा के समक्ष इस बात को उठाया था कि सुरक्षा विभाग की वेबसाइट पर अभी भी सुरक्षा समितियों में पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन प्रतिनिधियों को लेकर बनाए गए नाम दर्ज है।

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यहां गौर करने वाली बात है कि जहां एक तरफ 8 माह बीतने के बाद भी वर्तमान मान्यता यूनियन के साथ सुरक्षा समितियों को बनाकर उसका नाम वेबसाइट पर नहीं डाला गया, जिससे कर्मियों को यह पता ही नहीं है कि नई सुरक्षा समितियां बन गई है या नहीं यदि बनी है, तो उस समिति में कर्मियों की ओर से में कौन-कौन यूनियन प्रतिनिधि है।

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वहीं, दूसरी तरफ प्रबंधन के सेवानिवृत्त हो चुके अधिकारियों के नाम सुरक्षा समितियों में अभी भी दर्ज है। कहीं-कहीं पर तो सुरक्षा अधिकारी तक सेवानिवृत्त होकर दूसरे सुरक्षा अधिकारी वहां का कार्य संभाल चुके हैं। लेकिन पूर्व सुरक्षा अधिकारी का नाम ही समिति में दर्ज है। अब ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है या अनजाने में, यह बात जेसीएसएसआई के 74 वें रांची बैठक में शामिल सीटू प्रतिनिधि एसपी डे ने भी उठाया है। इसका जवाब तो प्रबंधन को ही देना होगा।

खामियों का पिटारा है, सतर्क हो जाएं

सुरक्षा का नाम आते ही कर्मी हो या कर्मियों का परिवार हो सब चौकन्ना हो जाते हैं। प्रबंधन भी हर साल के शुरुआत में लगभग सभी विभागों में सुरक्षा सप्ताह कार्यक्रम करता है। दुनिया भर के प्रतियोगिताओं को आयोजित करता है। अभियान चलाते नजर आता है। किंतु इसकी गहराइयों में जाने पर बहुत सी खामियां नजर आती हैं।

जैसे दुर्घटनाएं होने पर छुपाया जाना, इंज्यूरी फॉर्म ना भरना, दुर्घटनाओं को घटनाओं में बदलने का प्रयास करना, दुर्घटनाओं में घायल लोगों को मेन मेडिकल पोस्ट में दिखाए बिना सीधा बाहर लेकर चले जाना आदि।

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खानापूर्ति ठीक नहीं है सुरक्षा के मामले में

महासचिव जगन्नाथ त्रिवेदी का कहना है कि एक असुरक्षित घटना जहां एक तरफ प्रबंधन को कटघरे में खड़ा कर देता है। वहीं, दुर्घटनाग्रस्त हुए कर्मी एवं उनके परिजनों को तकलीफ में डाल देता है। इसीलिए सुरक्षा मामलों के साथ खानापूर्ति ठीक नहीं है। किंतु अक्सर यह देखने को मिलता है कि दुर्घटना घटने के साथ ही उस दुर्घटना में घायल कर्मियों को इंज्यूरी फॉर्म भरवा कर उनका इलाज का बंदोबस्त करने के साथ- साथ घटित दुर्घटना का केस स्टडी करके उस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर उक्त दुर्घटना का दोबारा से ना घटने के संदर्भ में काम करने की बजाय पूरी घटना को ही गोलमोल करने एवं मैनेज करने का प्रयास होता है।

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सुरक्षा को लेकर ऐसी खानापूर्ति वाली प्रवृत्ति ठीक नहीं है

उपाध्यक्ष डीवीएस रेड्‌डी ने कहा कि सुरक्षा समितियों को लेकर सीटू के साथ ऐसा ही प्रबंधन ने किया था, जो वर्तमान में कर रहा है। 2013 में सीटू सदस्यता जांच चुनाव लड़कर मान्यता प्राप्त यूनियन बनी, तब भी 13 महीनों तक सुरक्षा समितियों एवं कैंटीन मैनेजिंग समितियों को लेकर प्रबंधन चालाकी करता रहा।

प्रबंधन दूसरे एवं तीसरे स्थान पर आए यूनियन से भी प्रतिनिधियों को लेकर सुरक्षा समितियों का निर्माण करना चाहता था, जिसका सीटू ने खुलकर विरोध किया एवं प्रबंधन के सामने अपना पक्ष रखा था कि श्रम कानूनों में स्पष्ट दर्ज है कि सुरक्षा समिति एवं कैंटीन मैनेजिंग समिति में मान्यता यूनियन के प्रतिनिधि ही रहते हैं।

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बावजूद इसके प्रबंधन जानबूझकर टालमटोल करता रहा, जब 12 जून 2014 को जल प्रबंधन विभाग में हुई दुर्घटना में संयंत्र के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की मृत्यु हुई तथा दिल्ली से पूरी घटना एवं तब तक सुरक्षा समिति ना बनाने को लेकर दबाव पड़ा तो आनन-फानन में सीटू के साथ कमेटियां बनाई गई। प्रबंधन की यही चालाकियां अभी भी जारी है।

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मान्यता चुनाव हारने के बाद सुरक्षा समिति को लेकर सीटू ने स्पष्ट किया था अपना पक्ष

सहायक महासचिव टी.जोगा राव का कहना है कि दो बार मान्यता में रहने के बाद तीसरी बार जब मान्यता चुनाव में सीटू द्वितीय स्थान पर आया तो उस समय सीटू का प्रतिनिधिमंडल उच्च प्रबंधन के पास जाकर यह स्पष्ट कर दिया कि सीटू चुनाव में द्वितीय स्थान पर आया है एवं सुरक्षा समिति तथा कैंटीन मैनेजिंग समिति में मान्यता प्राप्त यूनियन के प्रतिनिधि रहते हैं।

इसीलिए प्रबंधन उस समय जीते हुए मान्यता यूनियन के साथ इन समितियों का निर्माण करे, जिसमें सीटू का कोई भी दावा नहीं है। किंतु 30 जुलाई 2022 को हुए मान्यता चुनाव के बाद जो यूनियन मान्यता प्राप्त यूनियन होने का दर्जा हासिल की उसको लेकर वर्तमान में इन समितियों का निर्माण किया जाना है, जिस पर उसके पूर्व मान्यता प्राप्त यूनियन ने इन कमेटियों में रहने का दावा प्रस्तुत किया था।

साथ ही साथ सीटू को भी यह दावा प्रस्तुत करने को कहा जा रहा था। किंतु सीटू ने फिर से अपनी बात को दोहराते हुए कहा था कि उन समितियों में केवल मान्यता प्राप्त यूनियन के प्रतिनिधि ही रहने चाहिए। इसीलिए सीटू ऐसा कोई दावा नहीं करेगा।