छिंदवाड़ा में 80% झुलसी अंकिता, नागपुर में 18 दिनों तक इलाज, डाक्टरों ने दिया जवाब, BSP Sector 9 Hospital के बर्न वार्ड ने बचा ली जिंदगी

Ankita suffered 80% burns in Chhindwara, was treated for 18 days in Nagpur, the burn ward of BSP Sector 9 Hospital saved her life
भिलाई इस्पात संयंत्र के चिकित्सालय ने दी जीवन की नई किरण। 80% झुलसी अंकिता कुमारी की प्रेरणादायक चिकित्सा यात्रा।
  • रातों-रात परिवार वाले एम्बुलेंस से लेकर अंकिता को सेक्टर 9 हॉस्पिटल के बर्न वार्ड पहुंचे।
  • कहीं उम्मीद नहीं दिखी। कोई लेने को तैयार नहीं था। परिवार ने डाक्टर उदय से फोन पर बात की थी।
  • सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सुर्खियों में।
  • बर्न विभाग अब केवल एक चिकित्सा इकाई नहीं, बल्कि मध्य भारत के लिए जीवन की उम्मीद है।

सूचनाजी न्यूज, भिलाई। “जको राखे साइयां मार सके न कोय, बाल न बांका कर सके जो जग बैरी होय।” यह एक कहावत है। इसका मतलब है कि जिसकी भगवान रक्षा करते हैं, उसका कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।

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कुछ ऐसी ही कहानी मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की 50 वर्षीय अंकिता की है। खाना बनाते समय गैस सिलेंडर ब्लास्ट होने से 80 प्रतिशत जली अंकिता को 18 दिनों तक कई अस्पतालों में रखने के बाद डाक्टरों ने जवाब दे दिया था। घर ले जाने की सलाह दी गई।

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जिस्म के कई हिस्से गंभीर रूप से जल चुके थे। दूसरे अस्पताल लेने को तैयार नहीं थे। सबने हाथ खड़ा कर दिया था कि अब जिंदगी मुश्किल है। उम्मीदों की किरण भिलाई स्टील प्लांट का बर्न वार्ड बना। परिवार वालों ने डाक्टर उदय से फोन पर बात की।

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डाक्टर उदय ने स्पष्ट शब्दों में कहा-इलाज में कोई कोताही नहीं बरतेंगे, जिंदगी-मौत ऊपर वाले पर छोड़ दीजिए। रातों-रात परिवार वाले एम्बुलेंस से लेकर अंकिता को सेक्टर 9 हॉस्पिटल के बर्न वार्ड पहुंचे। मौत के मुंहाने पर पहुंच चुकी अंकिता को अब नई जिंदगी मिल चुकी है। बच्चों को माँ मिली और पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

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पढ़िए घटनाक्रम

पीड़ित परिवार के मुताबिक 50 वर्षीय अंकिता 31 जनवरी को खाना बनाते समय जली थीं। छिंदवाड़ा के ही अस्पताल में प्राथमिक उपचार कराया गया। हालत बिगड़ती गई। इसके बाद नागपुर के एक नामी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 1 से 18 फरवरी तक यानी 18 दिनों तक नागपुर के बड़े हॉस्पिटल में इलाज हुआ, लेकिन सुधार के बजाय हालत नाजुके हो गई।

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घर ले जाने की सलाह दे दी गई। तब तक परिवार का 25 लाख खर्च हो चुका था। इसके बाद नागपुर एम्स में भर्ती कराया गया। फिर लता मंगेशकर हॉस्पिटल ले गए। कहीं उम्मीद नहीं दिखी। कोई लेने को तैयार नहीं था। परिवार ने डाक्टर उदय से फोन पर बात की। डाक्टर साहब का जवाब था कि इलाज करूंगा, बचने की गारंटी नहीं लेंगे। रातों-रात घर वाले भिलाई लेकर आए और चेहरे पर मुश्किल लेकर अब रवाना हो गए।

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जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र का बर्न विभाग

भिलाई इस्पात संयंत्र के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र के बर्न विभाग ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि समर्पित सेवा, चिकित्सकीय दक्षता और मानवीय संवेदना जब एक साथ कार्य करती हैं, तो असंभव को भी संभव किया जा सकता है।

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यह प्रेरणादायक कहानी है अंकिता कुमारी (बदला हुआ नाम) की, जिन्हें 19 फरवरी 2025 को ऑक्सीजन एंबुलेंस द्वारा गंभीर स्थिति में सेक्टर-9 अस्पताल स्थित बर्न विभाग में भर्ती कराया गया। उस समय वे सेप्टिक शॉक में थीं, उनका रक्तचाप और ऑक्सीजन सैचुरेशन अत्यंत निम्न स्तर पर था। जैसे ही वे चिकित्सालय पहुंचीं, चिकित्सकों की टीम ने तत्परता से उनका उपचार प्रारंभ किया। कुछ ही दिनों में उनकी हालत स्थिर होने लगी और उनका ब्लड प्रेशर एवं ऑक्सीजन सैचुरेशन सामान्य स्तर पर आ गया।

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स्किन ग्राफ्टिंग के लिए शरीर के 10 प्रतिशत हिस्से से त्वचा निकाली

अंकिता की स्थिति अत्यंत गंभीर थी, क्योंकि उनका लगभग 80 प्रतिशत शरीर जला हुआ था और स्किन ग्राफ्टिंग के लिए शरीर के 10 प्रतिशत हिस्से से त्वचा निकाली गई थी। प्रारंभिक उपचार के बाद हाई-रिस्क कंसेंट लेकर पहला ऑपरेशन किया गया, जिसमें उनके बाएँ हाथ से सड़ी हुई त्वचा निकाल कर स्किन ग्राफ्टिंग की गई।

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लगभग पाँच दिनों तक वे गहन संकट में रहीं, परंतु बर्न विभाग की विशेषज्ञ टीम ने प्रोटीन-युक्त पोषण, संक्रमण नियंत्रण, तथा सकारात्मक मनोबल बनाए रखने के प्रयासों से उनकी हालत को नियंत्रित किया। जिसके फलस्वरूप ग्राफ्टिंग प्रक्रिया सफल रही और धीरे-धीरे घाव भरने लगे व उनके स्वास्थ्य में सुधार आने लगा।

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सैंडविच तकनीक अपनाई गई

इसके पश्चात, 4 मार्च को दूसरा बड़ा ऑपरेशन किया गया जिसमें दाहिने हाथ, छाती और गर्दन पर स्किन ग्राफ्टिंग की गई। इस प्रक्रिया में स्किन बैंक की त्वचा का उपयोग करते हुए ‘सैंडविच तकनीक’ अपनाई गई, जिसके तहत मरीज की त्वचा और स्किन बैंक की त्वचा को बारी-बारी से लगाया गया, जिससे मरीज के शरीर का बड़ा क्षेत्र कवर किया जा सका।

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अपने पैरों पर खड़े होकर चलने-फिरने लगी

लगभग 15 दिनों के भीतर जहाँ ग्राफ्टिंग की गई थी और जहाँ से त्वचा निकाली गई थी, दोनों स्थानों पर घाव भरने लगे। इस प्रक्रिया से अंकिता का प्रोटीन लॉस और संक्रमण प्रभावी ढंग से नियंत्रित हुआ और वे अपने पैरों पर खड़े होकर चलने-फिरने में सक्षम हो गईं। यह देखकर उनके परिवार और बर्न विभाग की टीम में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार हुआ।
यह तीसरा बड़ा ऑपरेशन करना पड़ा था

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पीठ और पेट के हिस्सों के घाव अब भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुए थे और शरीर में नई त्वचा निकालने की जगह उपलब्ध नहीं थी। ऐसी स्थिति में पहले से त्वचा निकाले गए स्थान से पुनः त्वचा निकालकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर स्किन ग्राफ्टिंग की गई। यह तीसरा बड़ा ऑपरेशन था। इस जटिल प्रक्रिया के बाद उनकी स्थिति स्थिर हो गई और जान का खतरा पूरी तरह टल गया। अंकिता अब न केवल अच्छी तरह खान-पान करने लगीं, बल्कि नियमित फिजियोथेरेपी से उनका शरीर भी सक्रिय हो गया।

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बच्चों को माँ मिली और पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई

अंकिता कुमारी ने स्वयं यह स्वीकार किया कि जब बड़े शहरों के अस्पतालों में उन्हें 75 प्रतिशत जलने की स्थिति में “अब आप नहीं बच पाएँगी” कहा गया, तब भिलाई इस्पात संयंत्र के सेक्टर-9 स्थित जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र के बर्न विभाग ने उन्हें बचाने का पूरा विश्वास दिलाया।

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उन्होंने यह भी कहा कि यहाँ स्वच्छता, कार्यकुशलता, सेवा भावना और सकारात्मक दृष्टिकोण ने उन्हें जीने की प्रेरणा दी। जहां अन्य अस्पतालों में इलाज महंगा और अनिश्चित होता है, वहीं इस चिकित्सालय में सीमित खर्च में उच्चतम गुणवत्ता की चिकित्सा सेवा उपलब्ध हुई। उनके बच्चों को माँ मिली, और पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई।

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डाक्टर उदय को मिला इन डाक्टरों का साथ

इस समूचे उपचार प्रक्रिया में अनेक विभागों का सामूहिक योगदान था। निश्चेतना विभाग (एनेस्थीसिया विभाग) की विभाग-प्रमुख व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वस्थ सेवाएं) डॉ. विनीता द्विवेदी के मार्गदर्शन में तीनों ऑपरेशनों के दौरान एनेस्थीसिया दी गई और उनकी टीम ने पूरी सजगता से अपना कार्य संपन्न किया।

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सर्जरी विभाग के प्रमुख व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ. कौशलेंद्र ठाकुर और उनकी टीम की सर्जिकल विशेषज्ञता के साथ-साथ बर्न यूनिट प्रमुख एवं अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ उदय कुमार, प्लास्टिक सर्जरी विभाग से डिप्टी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ अनिरुद्ध मेने और एडवांस बर्न केयर विभाग, प्लास्टिक सर्जरी विभाग और सर्जरी विभाग के सदस्यों के नैष्ठिक प्रयासों ने हर कदम पर चिकित्सा की सटीकता और सुरक्षा सुनिश्चित की।

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मेडिसिन विभाग के प्रमुख व मुख्य चिकित्सा अधिकारी (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ. सौरभ मुखर्जी की टीम ने अंकिता के स्वास्थ्य की सतत निगरानी रखी और संक्रमण नियंत्रण से लेकर पोषण प्रबंधन तक की जिम्मेदारी निभाई।

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इस पूरी यात्रा के केंद्र में थे भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ. एम. रविंद्रनाथ, जिनके कुशल नेतृत्व और प्रेरणा से यह संपूर्ण कार्य संभव हो पाया। डिस्चार्ज के समय उन्होंने स्वयं अंकिता कुमारी से मिलकर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली और पूरी टीम को इस उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए सराहा।

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भावुक अंकिता के मुंह से निकला ये

अंकिता कुमारी ने अत्यंत भावुक होकर डॉ. रविंद्रनाथ को पुष्पगुच्छ भेंट किया और कहा कि यह चिकित्सालय न केवल जीवन रक्षक है, बल्कि विश्वास और उम्मीद का प्रतीक भी है। इस संपूर्ण प्रकरण ने यह सिद्ध किया है कि जब चिकित्सा सेवा में ज्ञान, समर्पण और मानवीय संवेदना का संगम होता है, तब चमत्कार केवल आशा नहीं, एक वास्तविकता बन जाता है।

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सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र का बर्न विभाग अब केवल एक चिकित्सा इकाई नहीं, बल्कि मध्य भारत के लिए जीवन की उम्मीद है-ऐसी उम्मीद जो हर जलते हुए सपने को फिर से जीने का अवसर देती है।

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