- ईपीएस 95 पेंशन राष्ट्रीय संघर्ष समिति रायपुर के अध्यक्ष अनिल कुमार नामदेव का पोस्ट सुर्खियों में।
सूचनाजी न्यूज, छत्तीसगढ़। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन-ईपीएफओ (Employees Provident Fund Organisation (EPFO)) के सदस्यों का दर्द छलक रहा है। कर्मचारी पेंशन योजना 1995 (Employee Pensione Scheme 1995) के तहत ईपीएस 95 की न्यूनतम पेंशन (EPS 95 Minimum Pension) 7500 रुपए की मांग है। इस पर पेंशनर्स लगातार सरकार पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन मांग स्वीकार नहीं हो सकी है।
इस पर ईपीएस 95 पेंशन राष्ट्रीय संघर्ष समिति रायपुर (EPS 95 Pension Rashtriya Sangharsh Samiti Raipur) के अध्यक्ष अनिल कुमार नामदेव का कहना है कि अभी हम सभी चौराहे पर खड़े हैं। हमें मंजिल तक ले जाने वाली राह कौन सी होगी। कोई बताने की स्थिति में नहीं है। अभी तक एक ट्रेड यूनियन और तीन सेवनिवृत्त संगठनों द्वारा मात्र एक-एक पत्र जारी कर लगता है अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली है।
आगे मसले को प्रबंधन से कैसे सुलटाया जाए। शायद अपने सामर्थ्य में कोई कोई न कोई कमियों के चलते आगे कदम नहीं बढ़ा पा रहे हैं। समस्या केवल सेवनिवृत्तों की है। ऐसा सोच कर BKNKS, FCIESU जैसे ट्रेड यूनियन भी चुप्पी लगाए बैठी हैं। उनसे कोई सवाल पूछने वाला नहीं है कि विनियम 82 के प्रावधान तो कार्यरत कर्मचारियों पर भी लागू है। ऐसा भी हो सकता है वाहवाही तो FCIEA सीटू से जुड़े रहे pushpadharan Kaipulli की होनी है।
कोर्ट में वो जीत कर आए हैं, तो वही आगे भी सभी पर प्रावधान लागू करके दिखाएं। यहां श्रम संगठनों के नेताओं के अहम (ego) को आपस में टकराते हुए हम साफ देख सकते हैं। इसका सबसे ज्यादा फायदा प्रबंधन उठा रही कि वाबजूद सर्वोच्च न्यायालय ने विनियम 82 सभी पर प्रभावशील होने की बात कह दी है,पर दावेदार की ही अपने हक हासिल करने की इक्षाशक्ति में कमी हो तो किसे पड़ी है,कि वो न्याय की बात करे।
नामदेव जी का कहना है कि प्रबंधन के आला अधिकारियों से नेताओं के अलावा सेवनिवृत्तों की छोटे शिष्टमंडल को भी रूबरू होकर चर्चा करना जरूरी होगा, वरना आपकी मांग यूं ही ठंडे बस्ते में पड़ी रह जानी है। कोर्ट जाने का विकल्प भी समयबाध्य है। कोर्ट भी लंबे समय तक सोते रहने का आपसे सबब पूछ सकती है। सबको मिल कर रास्ता खोजना होगा…।
पेंशनर्स Satish Prasad ने कहा-जिन्हें (जिस संगठन को) इस मामले को प्रबंधन के साथ मिल कर निराकरण करना चाहिए था वे चुप हैं। कारण तो मुझे पता नहीं, लेकिन अनुमान लगा सकता हूं कि उनका (उस मान्यता प्राप्त संगठन का) अहं किसी से टकरा रहा है। उन्हें पता है कि वे मान्यता प्राप्त है और प्रबंधन उन्हीं की सुनेगा। इसलिए वे नखरे दिखा रहे है और भुक्तभोगियों को सहना पड़ रहा है।
गैर मान्यता प्राप्त संगठन कितना भी कसमकश क्यों न कर ले, फिलहाल कोई आशा की किरण दिख नहीं रही। बस सुलगते रहिए…।